श्री हनुमान चालीसा Lyrics (2023)
दोहा: श्रीगुरु चरण सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि । बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
चौपाई: बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
रामदूत अतुलित बलधामा। अञ्जनि-पुत्र पवन-सुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा॥
हाथ वज्र औ ध्वजा विराजै। कांधे मूँज जनेऊ साजै॥
शंकर सुवन केसरी नंदन। तेज प्रताप महा जग वंदन॥
विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। विकट रूप धरि लङ्क जरावा॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचंद्र के काज सँवारे॥
लाय सञ्जीवनि लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कवि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा॥
तुम्हरो मन्त्र बिभीषण माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
युग सहस्त्र योजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गए अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डर ना॥
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा॥
और मोरे जो कोई आवै। चरण रज हनुमत तुलसी गावै॥
चौपाई: जैसे कींची उपाए सर्वोपरि। तैसे हि करहु गोविन्द बिचारि॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
दोहा: पवनतनय संकट हरण मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप॥
श्री हनुमान चालीसा का पाठ करते समय भक्ति और श्रद्धा के साथ करें ताकि इसका अच्छा अर्थ और महत्व समझ में आ सके।